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प्रसिद्ध वेदवाक्य

प्रसिद्ध वेदवाक्य प्रज्ञानं ब्रह्म     -    ऐतरेयोपनिषद् अहं ब्रह्मास्मि - बृहदारण्यकोपनिषद् सर्वं खल्विदं ब्रह्म - छान्दोग्योपनिषद् चरैवेति चरैवेति - ऐतरेय ब्राह्मण तत्त्वमसि - छान्दोग्योपनिषद् ब्रह्मवेद ब्रह्मैव भवति - मुण्डकोपनिषद् सत्यमेव जयते - मुण्डकोपनिषद् द्वा सुपर्णा सयुजा - मुण्डकोपनिषद्  अयमात्मा ब्रह्म - माण्डूक्योपनिषद् चत्वारि शृङ्गा त्रयोस्य पादा - ऋक् 4.58.3 सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म - तैत्तिरीयोपनिषद् ओम् पूर्णमदः पूर्णमिदं - बृहदारण्यकोपनिषद् जन्माद्यस्य यतः - ब्रह्मसूत्र न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः - कठोपनिषद् उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत - कठोपनिषद् श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतः - कठोपनिषद् न तत्र चक्षुर्गच्छति - केनोपनिषद् 

ऋग्वेदीय ब्राह्मण

             ऋग्वेदीय ब्राह्मण   1. ऐतरेय ब्राह्मण -    इसके रचयिता महिदास ऐतरेय हैं । इसमें कुल 40 अध्याय हैं । इसके 33 वें अध्याय में शुनः शेप आख्यान मिलता है । इसमें निरन्तर गतिमान रहने का उपदेश मिलता है - चरैवेति चरैवेति । 2. शांखायन या कौषीतकी ब्राह्मण - इसमें कुल 30 अध्याय हैं । 7-30 अध्याय में अग्निहोत्र, दर्शपौर्णमास यज्ञ, चातुर्मास यज्ञ व सोमयाग का वर्णन है ।

सामवेदीय ब्राह्मण

                                    सामवेदीय ब्राह्मण 1. पञ्चविंश ब्राह्मण - इसे ताण्ड्य, प्रौढ व महाब्राह्मण भी कहते है । इसमें 25 अध्याय, प्रमुख विषय सोमयाग है । 2. षड्विंश ब्राह्मण - यह अद्भुत ब्राह्मण के नाम से प्रसिद्ध है । 3. छान्दोग्य ब्राह्मण - इसे मन्त्र ब्राह्मण भी कहा जाता है । 4. सामविधान ब्राह्मण   5. आर्षेय ब्राह्मण - यह सामवेद की आर्षानुक्रमणी का कार्य करता है । 6. देवताध्याय ब्राह्मण - इसमें देवताओं व छन्दों का विवेचन मिलता है । 7. संहितोपनिषद् ब्राह्मण - इसमे सामगान पद्धित का उल्लेख मिलता है । 8. वंश ब्राह्मण - इसमें सामवेद के गुरुओं की वंश परम्परा का उल्लेख मिलता है । 9. जैमिनीय ब्राह्मण - इसे तवल्कार ब्राह्मण भी कहा जाता है ।

देवता

                                                        देवता निरुक्त में देव शब्द का निर्वचन - देवो दानाद्वा द्योतनाद्वा दीपनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा ।  ऋग्वेद में देवताओं की संख्या 33 है । ये निवासस्थान के कारण तीन भागों में विभक्त हैं - 11 पृथिवीस्थानीय, 11 अन्तरिक्षस्थानीय, 11 द्युस्थानीय । शतपथ ब्राह्मण में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, 1 इन्द्र व 1 प्रजापति को मिलाकर 33 देवता हैं । पुराणों में देवताओं की 33 कोटि संख्या कही है । वहाँ कोटि संख्या प्रकारवाचक है, संख्यावाचक नहीं ।

वेद रूपी शरीर की कल्पना (वेदाङ्ग)

                  वेद रूपी शरीर की कल्पना (वेदाङ्ग) वेदाङ्गों की संख्या 6 है । ये वेदार्थ व वेद के मूल तत्व को समझने में सहायक हैं । इसलिए इनकी वेद के शरीर रूप में कल्पना की गई है । छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तो कल्पो ऽ थ पठ्यते । ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।। शिक्षा घ्राणन्तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम् । तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ।। हिन्दी-अर्थ - वेद रूपी शरीर के छन्द पाँव हैं, कल्पसूत्रों को हाथ कहा गया है । ज्योतिषशास्त्र को चक्षु व निरुक्त को कान कहा गया है । वेद रूपी शरीर की शिक्षा नासिका है तथा व्याकरण को मुख के रूप में स्मरण किया गया है, इसलिए वेद को साङ्ग पढकर ही ब्रह्मलोक अर्थात् ज्ञानलोक में विदान् महिमामण्डित होता है, मान-सम्मान को प्राप्त करता है ।

गायत्री मन्त्र

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              गायत्री महामन्त्र

वेद व उसकी शाखाएँ

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वेद व उसकी शाखाएँ