वेद रूपी शरीर की कल्पना (वेदाङ्ग)


                 वेद रूपी शरीर की कल्पना (वेदाङ्ग)

वेदाङ्गों की संख्या 6 है । ये वेदार्थ व वेद के मूल तत्व को समझने में सहायक हैं । इसलिए इनकी वेद के शरीर रूप में कल्पना की गई है ।

छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तो कल्पोथ पठ्यते ।
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।।
शिक्षा घ्राणन्तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम् ।
तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ।।
हिन्दी-अर्थ - वेद रूपी शरीर के छन्द पाँव हैं, कल्पसूत्रों को हाथ कहा गया है । ज्योतिषशास्त्र को चक्षु व निरुक्त को कान कहा गया है । वेद रूपी शरीर की शिक्षा नासिका है तथा व्याकरण को मुख के रूप में स्मरण किया गया है, इसलिए वेद को साङ्ग पढकर ही ब्रह्मलोक अर्थात् ज्ञानलोक में विदान् महिमामण्डित होता है, मान-सम्मान को प्राप्त करता है ।



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